Friday, September 20, 2019

चर्चा में रहे लोगों से बातचीत पर आधारित साप्ताहिक कार्यक्रम

अश्विनी फड़नीस और जितेंद्र भार्गव दोनों इसका जवाब 'नहीं' में देते हैं.
जितेंद्र भार्गव कहते हैं कि ऐसा कोई फ़ोरम या मंच नहीं है जहां भारत पाकिस्तान की शिकायत कर सके या उसके फ़ैसले को चुनौती दे सके. ज़्यादा से ज़्यादा भारत जो कर सकता है वो है जवाबी कार्रवाई, यानी पाकिस्तान के लिए अपना एयरस्पेस भी बंद करना.
अश्विनी फड़नीस कहते हैं, "आम तौर पर वीवीआईपी विमानों को आने-जाने की अनुमति मिल जाती है लेकिन चूंकि अभी भारत-पाकिस्तान में तनाव गहरे हैं इसलिए पाकिस्तान ने राष्ट्रपति कोविंद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विमानों को अपने हवाई क्षेत्र से गुज़रने की अनुमति नहीं दी."
इसके जवाब में फड़नीस कहते हैं, "ऐसा नहीं है. असल में ये फ़ैसले कूटनीतिक संकेत भर होते हैं. इनके ज़रिए एक देश दूसरे देश को ये संकेत देता है कि उसने सख़्त रुख़ अख़्तियार किया हुआ है. पाकिस्तान का ये फ़ैसला भी कुछ ऐसा ही है."
वायुक्षेत्र बंद करने के कूटनीतिक संकेत का प्रभाव भारत और पाकिस्तान में एयरलाइंस के कारोबार पर भी पड़ता है.
बालाकोट हमले के बाद जब भारत-पाकिस्तान ने अपने वायुक्षेत्र बंद किए तब इसका नुक़सान दोनों देशों को उठाना पड़ा था.
भारत के नागरिक उड्डयन मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने संसद में बताया था कि इसकी वजह से भारत को लगभग 300-400 करोड़ रुपये का नुक़सान हुआ था.
वहीं, पाकिस्तानी मीडिया में आई ख़बरों के मुताबिक़ भारतीय एयरस्पेस बंद होने के कारण पाकिस्तानी एयरलाइंस को कई बिलियन रुपयों का नुक़सान हुआ था.
भारत और पाकिस्तान यूरोप के लिए बेहद अहम 'गेटवे' हैं. दिन में लगभग 200-250 विमान यूरोप जाने के लिए भारत और पाकिस्तान के वायुक्षेत्र से होकर गुज़रना पड़ता है.
ऐसे में अगर हम अनुमान लगाएं कि इन सभी विमानों को यूरोप पहुंचने के लिए 40-45 मिनट ज़्यादा वक़्त लगाना पड़े तो एयरलाइन्स को कितना नुक़सान होगा और यात्रियों को कितनी असुविधा उठानी पड़ेगी.
फड़नीस बताते हैं कि एयरस्पेस को बंद रखने की कोई अधिकतम समयसीमा या अवधि नहीं होती.
वो कहते हैं, "अमूमन ये पारस्परिक होता है. अगर एक देश पहल करके अपना वायुक्षेत्र खोलता है तो सामान्य तौर पर दूसरा भी ऐसा ही करता है. मगर हमेशा ऐसा ही हो, ऐसा भी ज़रूरी नहीं है. जैसे कि बालाकोट हमले के बाद भारत ने पहले अपना वायुक्षेत्र खोल दिया था लेकिन पाकिस्तान ने ऐसा करने में काफ़ी वक़्त लिया."
जितेंद्र भार्गव कहते हैं कि भारतीय प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के विमान को अपने वायुक्षेत्र से न गुज़रने देकर पाकिस्तान ने अपरिपक्वता का परिचय दिया है और भविष्य में उसे इसका नुक़सान ही होगा, फ़ायदा नहीं.
वो कहते हैं, ''अनुच्छेद-370 को ख़त्म किए जाने के भारत के फ़ैसले के बाद से ही पाकिस्तान इस मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण करने और दुनिया का कश्मीर मसले की ओर ध्यान खींचने की कोशिश कर रहा है. प्रधानमंत्री मोदी के लिए अपना एयरस्पेस बंद करना भी एक ऐसी ही कोशिश है.''
दूसरी तरफ़, अश्विनी फड़नीस का मानना है कि राष्ट्रपति कोविंद के विमान को पाकिस्तानी वायुक्षेत्र में प्रवेश की अनुमति न मिलने के बाद प्रधामंत्री मोदी के विमान के लिए ये अर्ज़ी पाकिस्तान को भेजनी ही नहीं चाहिए थी.
फड़नीस कहते हैं, "अगर जुलाई में प्रधानमंत्री बिश्केक जाने के लिए पाकिस्तानी वायुक्षेत्र छोड़कर ओमान और ईरान का वायुक्षेत्र चुनते हैं तो कुछ महीने बाद ही पाकिस्तानी एयरस्पेस में जाने की ज़रूरत क्यों पड़ी? मुझे इसकी कोई वजह समझ नहीं आती."
इस साल जुलाई में पुलवामा हमले और बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद जारी तनाव को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी बिश्केक यात्रा में पाकिस्तानी वायुक्षेत्र से होकर नहीं गुजरे थे. ऐसा तब हुआ था जब पाकिस्तान ने उनके विमान के अपने वायुक्षेत्र में प्रवेश के लिए सहमति जता दी थी.

Monday, August 26, 2019

भारत में गवाह बनना क्यों ख़तरनाक है?

दिल्ली के एम्स अस्पताल में भर्ती उन्नाव बलात्कार कांड की पीड़िता की हालत अभी भी नाज़ुक बनी हुई है.
रायबरेली के नज़दीक हुई एक दुर्घटना में पीड़िता और उनके वकील गंभीर रूप से घायल हुए थे जबकि दो महिला रिश्तेदारों की मौत हो गई थी.
उनमें से एक रिश्तेदार 2017 की घटना की चश्मदीद थीं.
लखनऊ के स्थानीय पत्रकार समीरात्मज मिश्र के मुताबिक़ पीड़िता और गवाह को सुरक्षा मिली हुई थी लेकिन दुर्घटना वाले दिन गनर उनके साथ नहीं था. सीबीआई मामले की जांच कर रही है.
मामले में अभियुक्त बीजेपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर सभी आरोपों से इनकार करते रहे हैं.
इस घटना ने एक बार फिर भारत में चश्मदीदों की सुरक्षा की ओर सभी का ध्यान खींचा है.
चश्मदीद को न्याय व्यवस्था की आंख और कान बताया गया है लेकिन अगर अभियुक्त प्रभावशाली हो तो भारत में चश्मदीद होना आसान नहीं.
दुनिया भर में 200 से ज़्यादा आश्रम चलाने वाले आसाराम बापू के बेटे नारायण साई पर लगे यौन उत्पीड़न मामले में महेंद्र चावला एक महत्वपूर्ण गवाह हैं.
आसाराम बापू और उनके बेटे नारायण साई बलात्कार मामलों में जेल में हैं.
लेकिन सुरक्षा को लेकर महेंद्र चावला की चिंता ख़त्म नहीं हुई हैं - "आसाराम जेल में हैं तो क्या हुआ, उनके सैकड़ों समर्थक तो मुझे निशाना बना सकते हैं."
महेंद्र चावला के मुताबिक़ आसाराम बापू से जुड़े कुल 10 लोगों पर हमले हुए, उनमें से तीन की मौत हुई और एक व्यक्ति राहुल सचान आज तक ग़ायब हैं.
"जिन लोगों पर हमला हुआ या फिर जिनकी मौत हुई, ये सब प्राइम विटनेस की श्रेणी में आते थे लेकिन आज तक आसाराम को अभियुक्त नहीं बनाया गया."
महेंद्र चावला को पुलिस सुरक्षा मिली हुई है लेकिन फिर भी उनसे संपर्क करना आसान नहीं है.
वो अंजान फ़ोन नंबर नहीं उठाते. अगर आपने किसी के रेफ़रेंस से उन्हें मेसेज किया भी हो तब भी उनके पास सवालों की भरमार होती है.
कारण - उन्हें सालों तक मिलीं धमकियां और उन पर हुआ जानलेवा हमला.
महेंद्र चावला दावा करते हैं 13 मई 2015 में सुबह नौ-साढ़े नौ के आसपास जब वो हरियाणा के पानीपत ज़िले के सनौली खुर्द गांव में अपने पहले फ़्लोर वाले घर में आराम कर रहे थे तो उन्हें बाहर कुछ आवाज़ सुनाई दी.
बाहर उन्हें दो लोग दिखे जिनके हाथ में बंदूक़ थी. उनमें से एक सीढ़ी चढ़ रहा था जबकि दूसरा नीचे पहरेदारी के लिए खड़ा था.
दोनो में गुत्थमगुत्थी के दौरान हमलावर ने महेंद्र चावला पर दो फ़ायर किए. पहली गोली दीवार पर लगी जबकि दूसरी महेंद्र चावला के कंधे पर.
हमलावार उन्हें मरा समझ छोड़कर भाग गए. वो क़रीब आठ से दस दिन अस्पताल में रहे.
महेंद्र चावला के मुताबिक़ हमलावर ने धमकी देते हुए कहा था, "नारायण साई के ख़िलाफ़ गवाही देता है?"
धर आसाराम बापू के वकील चंद्रशेखर गुप्ता सभी आरोपों से इनकार करते हैं.
बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा, "साल 2013 में आसाराम बापू की गिरफ़्तारी के बाद जिन मामलों को हमला बताया जा रहा है, उनमें से किसी मामले में आसाराम बापू अभियुक्त नहीं हैं. साल 2009 में राजू चांदक नाम के एक आश्रम साधक पर हमला हुआ था, उस मामले में आसाराम बापू को अभियुक्त बताया गया है."
महेंद्र चावला के आरोपों पर चंद्रशेखर गुप्ता कहते हैं, "आप पर कोई हमला होता है और आप बोल दो कि देश के प्रधानमंत्री ने हमला करवाया तो पुलिस जांच करेगी, और पुलिस पाएगी कि आरोप ग़लत हैं."
कई बार गवाहों पर पैसे, धमकी आदि का दबाव रहता है. ऐसे मामलों में अभियुक्त सबूतों के अभाव में छूट जाते हैं.
गुजरात में आरटीआई ऐक्टिविस्ट और पर्यावरणविद् अमित जेठवा मामले में वकील आनंद याग्निक गवाह भी हैं.
याग्निक के मुताबिक़ 20 जुलाई 2010 को गुजरात हाईकोर्ट के बाहर अमित जेठवा की हत्या से एक दिन पहले अमित ने उनसे उनके चैंबर में अपनी जान को लेकर चिंता जताई थी.
याग्निक के मुताबिक़ अमित जेठवा मर्डर ट्रायल के दौरान 195 में से 105 गवाह अपने बयान से मुकर गए.
इसी साल जुलाई में पूर्व सांसद दीनू सोलंकी को अमित जेठवा की हत्या में दोषी पाया गया जिसके बाद याग्निक को सुरक्षा दी गई.
पुलिस का ग़ैर-मददगार रवैया, भ्रष्टाचार भी गवाहों की परेशानी बढ़ाता है.
गवाहों के साथ न्याय व्यवस्था में कैसे व्यवहार होता है, इस पर 2018 के आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने लिखा है कि, गवाहों के पास न कोई न्यायिक सुरक्षा होती है न उनके साथ उचित व्यवहार होता है. आज की न्याय व्यवस्था गवाहों पर बहुत ध्यान नहीं देती, उनकी आर्थिक और निजी हालत देखे बिना उन्हें अदालत बुलाया जाता है, साथ ही उन्हें आने-जाने का ख़र्च भी नहीं दिया जाता.

Tuesday, May 21, 2019

جاءت افتتاحية صحيفة الغارديان بعنوان "فشلت الحكومة - لقد حان الوقت للعودة إلى الناس

وجاءت افتتاحية صحيفة الغارديان بعنوان "فشلت الحكومة - لقد حان الوقت للعودة إلى الناس".
وقالت الصحيفة إن مجلس العموم سيصوت الأسبوع المقبل على أكثر القرارات تأثيراً في عصرنا، مضيفة أنه في حال أصيبت الحكومة مرة أخرى بالإحباط وفقدان الحماس، فإن ذلك سينعكس على الجوانب الرئيسية للنموذج الاقتصادي لهذا البلد والتماسك الاجتماعي والمستقبل الدولي فيما يسمى بـ "التصويت الهادف" على صفقة خروج بريطانيا من الاتحاد الأوروبي.
وأشارت الصحيفة أنها تريد رؤية إصلاحات في بريطانيا ضمن إصلاحات الاتحاد الأوروبي، موضحة أنه لن يتم تحقيق أي جزء من هذا بشكل أفضل إذا خرجت بريطانيا من الاتحاد الأوروبي.
وأردفت أن المعضلة التي تواجه البلاد ليس البريكست بكل بساطة ، بل وضع بريطانيا في أوروبا بعد خروجها منه، ولهذا السبب يجب على جميع الأطراف التصويت لإجراء استفتاء ثان يسلط الضوء فيه على الاقتصاد السياسي ويعمل على الحد من عدم المساواة بين المناطق والمجتمعات ولديه حل عملي بشأن الهجرة.
وختمت بالقول إن إصلاح العلاقات مع أوروبا مرتبط بشكل وثيق بالحاجة إلى الاستثمار في الصناعات والعمل كأمة واحدة في توزيع كامل الاستثمارات في كافة أنحاء البلاد في إنكلترا وويلز وإسكتلندا وإيرلندا الشمالية.
من صحيفة فاينانشال تايمز نقرأ مقالا لمراسل الصحيفة في دبي سايمون كير بعنوان "السعودية تسعى لمنافسة نيتفليكس بخدمة جديدة ضمن الحرب الدعائية في المنطقة".
ويقول التقرير إن أكبر خدمة تلفزيونية في الشرق الأوسط قررت توسيع خدمة البث المباشر بها في محاولة لمنافسة توسع نتفليكس في المنطقة العربية وذلك ضمن خطة سعودية لاستخدام امكانياتها الإعلامية في معاركها الإقليمية.
وأضاف أن الخطوة التي قامت بها مجموعة ام بي سي السعودية، التي تتخذ من دبي مقرا لها، تأتي ضمن جهود الرياض لشن حرب دعائية شرسة ضد قطر وإيران.
وأصبحت وسائل الإعلام والأصول الإعلامية الأخرى مثل الأقمار الصناعية وحقوق بث مباريات كرة القدم من وسائل القوى الناعمة الرئيسية التي تستخدمها السعودية وحليفتها الإمارات في المنطقة منذ ما يعرف بالربيع العربي في 2011.
وقالت الصحيفة إن ام بي سي ستوظف جوانس لارشر المدير التنفيذي السابق لخدمة هولو العالمية ليصبح مسؤولا عن توسيع خدمة البث المباشر التابعة للمجموعة التي تحمل اسم "شاهد" في ظل خطة موازية لتطوير المحتوى العربي.
وتضمنت الخطة السعودية، بحسب الصحيفة، العمل على دعم المحتوى العربي بانتاج أعمال تاريخية وسير ذاتية لشخصيات عربية إضافة إلى شراء محتوى من جميع أنحاء العالم.
وتقول الصحيفة إن استجابة نتفليكس لطلب سعودي بسحب حلقة كوميدية انتقد فيها الممثل الأمريكي حسن منهاج ولي العهد محمد بن سلمان ودوره في قتل الصحفي جمال خاشقجي جددت المخاوف بشأن حرية التعبير في المنطقة.
وتعتمد الخطة السعودية بشكل أساسي وفقا للصحيفة على مجموعة أم بي سي السعودية التي تأسست عام 1991 وكانت دائما تدار تحت عين الحكومة السعودية لكنها تقدم محتوى أكثر انفتاحا من الذي يقدم في التلفزيون الرسمي مع الحفاظ على الطابع العائلي للترفيه الذي يقدم عبر مجموعة القنوات.