Monday, August 27, 2018

क्या सऊदी अरब का पूरा कुनबा बिखर जाएगा?

सऊदी अरब और अमरीका के बीच इतना प्रेम क्यों है? यह सवाल ऐसा ही है कि एक तानाशाह या राजा और चुने हुए राष्ट्रपति के बीच दोस्ती कैसे हो सकती है?
अमरीका लोकतंत्र, मानवाधिकार और महिलाओं के बुनियादी अधिकारों को लेकर दुनिया भर में मुहिम चलाता है, लेकिन सऊदी अरब तक उसकी यह मुहिम क्यों नहीं पहुंच पाती है.
इराक़ में तो अमरीका ने सद्दाम हुसैन की तानाशाही को लेकर हमला तक कर दिया. सऊदी अरब में भी लोकतंत्र नहीं है, मानवाधिकारों के आधुनिक मूल्य नहीं हैं और महिलाएं आज भी बुनियादी अधिकारों से महरूम हैं, लेकिन अमरीका चुप रहता है. आख़िर क्यों?
ऐसा कौन सा हित है जिसके चलते अमरीका अपने ही आधुनिक मूल्यों की सऊदी में अनदेखी कर रहा है?
जनवरी 2015 में जब सऊदी के किंग अब्दुल्लाह का फेफड़े में इन्फ़ेक्शन से निधन हुआ तो अमरीकी नेताओं ने श्रद्धांजलि की झड़ी लगी दी. तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अब्दुल्लाह की प्रशंसा में कहा था कि मध्य-पूर्व में शांति स्थापित में उनका बड़ा योगदान था.
तब के विदेश मंत्री जॉन केरी ने कहा कि किंग अब्दुल्लाह दूरदर्शी और विवेक संपन्न व्यक्ति थे. उपराष्ट्रपति जो बाइडन ने तो यहां तक घोषणा कर दी कि वो उस अमरीकी प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करेंगे जो किंग अब्दु्ल्लाह की श्रद्धांजलि में शोक जताने सऊदी अरब जाएगा.
किंग अब्दुल्लाह के निधन पर अमरीका की यह प्रतिक्रिया चौंकाने वाली नहीं थी. सऊदी अरब और अमरीका दशकों से सहयोगी हैं. इसके बावजूद अमरीका और सऊदी के सुल्तान के संबंधों में विरोधाभासों का ज़िक्र थमता नहीं है.
मानवाधिकारों को लेकर सऊदी का रिकॉर्ड काफ़ी ख़राब है, क्षेत्रीय शांति में भी उसकी भूमिका पर्याप्त संदिग्ध है. अमरीका और सऊदी की दोस्ती के बारे में कहा जाता है कि अमरीका को सऊदी के साथ की जितनी ज़रूरत अभी है उतनी कभी नहीं रही.
किंग अब्दुल्लाह के बाद उनके सौतेले भाई सलमान ने कमान संभाली. उन्होंने भी अमरीका के साथ अपने पूर्ववर्ती सुल्तान की नीति जारी रखी. यह कोई छुपी हुई बात नहीं है कि सऊदी में राजशाही है और वहां कोई विपक्ष नहीं है.
धार्मिक बहुलता जैसी बात तो दूर की है. सऊदी में की कुल आबादी में महिलाएं 42.5 फ़ीसदी हैं. शुरुआत में तो यहां महिलाओं के साथ बच्चों की तरह व्यवहार होता था. सऊदी में 'गार्डियनशिप' सिस्टम है.
इसके तहत महिलाओं को काम या यात्रा के लिए घर से निकलने की अनुमति पुरुषों से लेनी होती है. किंग अब्दुल्लाह की कुल 15 बेटियों में से चार बेटियां 13 सालों तक नज़रबंद
किंग अब्दु्ल्लाह लंबे समय तक मिस्र की मुस्लिम ब्रदरहुड को मदद पहुंचाते रहे. सऊदी अरब क्षेत्र के शिया आंदोलनों के भी ख़िलाफ़ रहा है. उसे हमेशा लगा कि इससे ईरान का प्रभाव बढ़ेगा. जब शिया प्रदर्शनकारियों ने पड़ोसी बहरीन में तानाशाही शासन प्रणाली को चुनौती दी तो सऊदी ने अपनी सेना भेज दी.
सऊदी ने सीरिया में भी विद्रोहियों को मदद की, लेकिन यह उसी के ख़िलाफ़ गया. सऊदी अरब पर ये आरोप लगते रहे हैं कि वो इस्लामिक स्टेट की आर्थिक मदद करता है.
इतना कुछ होने के बावजूद सऊदी को अमरीका साथ क्यों देता है? वॉशिंगटन में इंस्ट़ीट्यूट फ़ॉर गल्फ़ अफ़ेयर्स में सऊदी अरब के विशेषज्ञ अली अल-अहमद का कहना है कि इसका बहुत ही आसान जवाब है- तेल.
वो कहते हैं, ''सऊदी और अमरीका कोई स्वाभाविक दोस्त नहीं हैं, लेकिन दोनों एक-दूसरे का साथ देना नहीं भूलते हैं. दोनों एक-दूसरे का फ़ायदा उठाते हैं. अमरीका को 1940 के दशक से सऊदी से सस्ता तेल मिल रहा है और यही सऊदी और अमरीका की दोस्ती का राज़ है. तेल के अलावा भी कई चीज़ें हैं, लेकिन तेल सबसे अहम है.''
रही थीं. ऐसा इसलिए क्योंकि इन चारों ने महिलाओं से जुड़ी नीतियों को लेकर शाही शासन की आलोचना की थी. इन चारों में से दो ने कहा था कि उन्हें ठीक से खाना तक नहीं दिया गया.
ओबामा का यह कहना कि अब्दुल्लाह ने मध्य-पूर्व में शांति स्थापना में अहम योगदान दिया था यह तथ्यों से परे है. मिस्र में जब होस्नी मुबारक के शासन के ख़िलाफ़ लोकतंत्र के समर्थन लोग सड़क पर उतरे तो किंग अब्दुल्लाह ने इसका विरोध किया था.
उन्होंने राष्ट्रपति ओबामा से होस्नी मुबारक की सत्ता बचाने के लिए हस्तक्षेप करने को कहा था. दूसरी तरफ़ अमरीका होस्नी मुबारक के ख़िलाफ़ लोगों के आंदोलन का समर्थन कर रहा था.

Wednesday, August 15, 2018

आशुतोष के इस्तीफे पर बोले अरविंद केजरीवाल: इस जनम में आपका इस्तीफा स्वीकार नहीं, सर हम सब बहुत प्यार करते हैं

ई दिल्ली: पत्रकारिता की दुनिया को छोड़ राजनीति में आए आम आदमी पार्टी के नेता आशुतोष ने भले ही पार्टी को अलविदा कह दिया हो, मगर अरविंद केजरीवाल उनके इस्तीफे को मानने को तैयार नहीं हैं. दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट कर आशुतोष के इस्तीफे को मंजूर करने से साफ इनकार कर दिया है. मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने आशुतोष के ट्वीट पर रिट्वीट कर कहा कि वह आशुतोष के इस्तीफे को मंजूर नहीं करेंगे. गौरतलब है कि आशुतोष ने आज इस्तीफा देकर कहा था कि वह निजी वजहों से पार्टी से अलग हो रहे हैं.
इससे पहले आप नेता और राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने ट्वीट किया, ''ज़िंदगी में एक अच्छे दोस्त, एक सच्चे इन्सान, एक भरोसेमन्द साथी के रूप में आशुतोष जी से मेरा रिश्ता जीवन पर्यन्त रहेगा, उनका पार्टी से अलग होना मेरे लिये एक हृदय विदारक घटना से कम नहीं.''गौरतलब है कि इस्तीफा देने के बाद आशुतोष ने कहा कि हर यात्रा का एक अंत होता है. AAP के साथ मेरा जुड़ाव जो बहुत ही अच्छा/क्रांतिकारी था उसका भी अंत हुआ है. मैंने पार्टी से इस्तीफ़ा दे दिया है और PAC से इसे मंज़ूर करने कोहालांकि इसमें उन्हें भाजपा के डा. हर्षवर्धन के सामने हार का सामना करना पड़ा था. वह इस साल जनवरी में दिल्ली की राज्यसभा की तीन सीटों के लिये तय किये गये उम्मीदवारों की सूची में शामिल नहीं किये जाने के बाद से असंतुष्ट चल रहे थे. उन्होंने उम्मीदवारों के रूप में दो कारोबारियों को चुने जाने पर पीएसी की बैठक में भी असहमति व्यक्त की थी. कहा है. ये पूरी तरह से निजी कारणों से है. पार्टी का शुक्रिया और मेरा साथ देने वालों का भी शुक्रिया. आगे आशुतोष ने मीडिया से कहा कि कृपया मेरी निजता का सम्मान करें. मैं किसी तरह से कोई बाइट नहीं दूंगा.

ऐसी खबरें हैं कि इस साल आम आदमी पार्टी की ओर से राज्यसभा न भेजे जाने की वजह से वह नाराज चल रहे थे. खबर है कि कि आशुतोष राजनीति से भी सन्यास ले सकते हैं. आशुतोष दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के काफी करीबी माने जाते रहे हैं. बता दें कि आम आदमी पार्टी ने संजय सिंह, सुशील गुप्ता और एनडी गुप्ता को राज्यसभा में भेजा था.

हालांकि, इससे पहले आम आदमी पार्टी के नेता कुमार विश्वास ने भी सीएम अरविंद केजरीवाल पर तंज कसा. कुमार विश्वास ने ट्वीट किया, 'हर प्रतिभासम्पन्न साथी की षड्यंत्रपूर्वक निर्मम राजनैतिक हत्या के बाद एक आत्ममुग्ध असुरक्षित बौने और उसके सत्ता-पालित, 2G धन लाभित चिंटुओं को एक और “आत्मसमर्पित-क़ुरबानी” मुबारक हो! इतिहास शिशुपाल की गालियां गिन रहा है. आज़ादी मुबारक.

गौरतलब है कि साल 2015 में दिल्ली में केजरीवाल सरकार के गठन के बाद आप से अलग हुये प्रमुख नेताओं की फेहरिस्त में आशुतोष, चौथा बड़ा नाम हैं. इससे पहले आप के संस्थापक सदस्य योगेन्द्र यादव, प्रशांत भूषण और शाजिया इल्मी पार्टी से नाता तोड़ चुके हैं. इसके अलावा प्रो. आनंद कुमार, पूर्व विधायक विनोद बिन्नी और पूर्व मंत्री कपिल मिश्रा भी पार्टी से दूरी बना चुके हैं.

पिछले कुछ समय से पार्टी की गतिविधियों से अलग चल रहे कुमार विश्वास भी आप नेतृत्व से नाराज बताए जाते हैं. वह आप संयोजक अरविंद केजरीवाल की कार्यशैली पर प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से समय समय पर सवाल उठाते रहे हैं. पूर्व पत्रकार आशुतोष ने साल 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में आप को मिली कामयाबी के फलस्वरूप केजरीवाल के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद साल 2014 में पार्टी की सदस्यता ग्रहण की थी. इसके बाद हुये लोकसभा चुनाव में वह आप के टिकट पर दिल्ली की चांदनी चौक सीट से चुनाव लड़े थे.